मंदिर की माँग करने वाला हिंदू ‘तानाशाह-अत्याचारी’, हिंदू हमेशा कानून के खिलाफ: सुप्रीम कोर्ट से रिटायर जज सुप्रीम कोर्ट के ही राम मंदिर फैसले पर रोए
सुप्रीम कोर्ट में जज रहे रोहिंटन नरीमन ने एक लेक्चर के दौरान राम मंदिर पर दिए गए फैसले की आलोचना की है। उन्होंने इसे न्याय के साथ मजाक बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवम्बर, 2019 को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का पटाक्षेप कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने लगभग एक दशक तक सुनवाई करने के बाद इस दिन हिन्दू पक्ष में फैसला दिया था। इसको लेकर लम्बे समय तक देश के बुद्धिजीवी और कट्टरपंथी वर्ग ने रोना-धोना किया था। इसके बाद मंदिर भी बन गया और लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं ने दर्शन भी कर लिए। लेकिन जिस तरह पुरवाई हवा चलने पर पुराना दर्द उठ पड़ता है, उसी तरह अब भी कभी-कभार लिबरल जमात के मन में यह हूक उठती ही रहती है।
राम मंदिर के फैसले को लेकर विलाप करने वालों में नया नाम उसी बिरादरी से है, जिसने उसे बनाने का फैसला दिया था। कॉन्ग्रेस सरकार में देश के सॉलिसिटर जनरल रहे और बाद में सुप्रीम कोर्ट में जज बने रोहिंटन नरीमन ने एक लेक्चर के दौरान राम मंदिर पर दिए गए फैसले की आलोचना की है। उन्होंने इसे ‘न्याय का मजाक’, सेक्युलरिज्म का उल्लंघन करने वाला फैसला करार दिया, हिन्दुओं को कानून के खिलाफ रहने वाला बताया, मस्जिदों के खिलाफ याचिका डालने को दैत्य के सर की तरह बताया।
रोहिंटन नरीमन ने यह टिप्पणियाँ जस्टिस AM अहमदी मेमोरियल लेक्चर में की हैं। ये अहमदी फाउंडेशन ने आयोजित करवाया था। इसका विषय ‘धर्मनिरपेक्षता और भारतीय संविधान’ था। इसमें रोहिंटन नरीमन समेत तमाम जजों को बुलाया गया था। नरीमन ने यहाँ इस कार्यक्रम का पहला लेक्चर दिया। उनके लेक्चर की गाड़ी संविधान के अलग-अलग प्रावधानों, सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों और AM अहमदी की बात करते हुए राम मंदिर मामले और लिबरल रोने-धोने की तरफ मुड़ गई।
रोहिंटन नरीमन ने कहा कि यह पूरा मसला 1984 में विश्व हिन्दू परिषद की राम मंदिर बनाने की माँग को ‘तानाशाही’ और ‘अत्याचारी’ माँग से चालू हुआ था। यानि अपने आराध्य देव के पूजास्थल की माँग करना नरीमन के लिए तानाशाही की बात है। वह इस दौरान यह भी भूल गए कि VHP ने सिर्फ अपनी माँग कानूनी रूप से उठाई थी, यह अत्याचार कैसे हो सकता है। अत्याचार तो मंदिर का विध्वंस था। मंदिर के लिए लड़ाई सदियों पहले से चल रही थी।
उनके लिए शायद यह सब कहना बहुत आसान है। ऐसा इसलिए क्योंकि वह जिस समुदाय से आते हैं, उसके खिलाफ भारत में कभी कोई अन्याय नहीं हुआ। लेकिन हाँ, उन्हें ये जरूर याद करना चाहिए कि उनके पुरखे पर्शिया से क्यों भागे थे। उनको ना याद हो, मैं बता देता हूँ। यहाँ इस्लाम का कानून नाफ़िज हो गया था, इसलिए पारसी भारत आ गए थे और सैकड़ों सालों से अपने धर्म को स्वतंत्रतापूर्वक मान रहे हैं। उन्हें शरण भी इन्हीं ‘अत्याचारी’ और ‘तानाशाह’ VHP वालों के पुरखों ने ही दी थी।
इसके बाद नरीमन ने राम मंदिर के मामले में हिन्दू पक्ष को हमेशा कानून के खिलाफ रहने वाला भी करार दिया। जबकि असल बात ये है कि यदि हिन्दू पक्ष कानून के खिलाफ रहता तो बाबरी 6 दिसम्बर, 1992 तक खड़ी ही ना रह पाती और मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी, 2024 को ना होती। हिन्दू पक्ष ने तो इस मामले में अंग्रेज न्यायाधीशों से लेकर जिला अदालत, हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक कानूनी लड़ाई लड़ी। वो तो कानून से मंदिर मांगते रहे और इसी कानून के अनुसार मंदिर बनाया। इस बीच उनके आराध्य को ‘काल्पनिक’ तक बताया गया।
अगर हिन्दू कानून के खिलाफ होते तो आज देश में बहुसंख्यक होने के बाद भी वह कश्मीर से भाग नहीं रहे होते। अगर हिन्दू कानून के खिलाफ होते तो काशी मथुरा का मामला कोर्ट में अटका नहीं होता। खैर पीढ़ी दर पीढ़ी वकालत का पेशा अपनाने वाले नरीमन साहब को यह सब कैसे पता होगा। वह तो जन्म से लेकर अब तक उस ‘बबल’ में रहते होंगे जिसका नाम ‘लिबरल जमात’ है। नरीमन ने हिन्दुओं को कानून के खिलाफ तो पाया ही इस बात पर भी बड़ी निराशा जताई कि बाबरी गिराने के एवज में उसी राम जन्मभूमि के सीने पर मस्जिद दुबारा क्यों नहीं खड़ी की गई।
मस्जिद ना तामीर किए जाने को नरीमन ने ‘न्याय के साथ भद्दा मजाक‘ बताया और कहा कि यह भरपाई होती। शायद नरीमन साहब को यह नहीं पता कि असल भरपाई तो राम मंदिर का निर्माण ही है। उन्हें एक ढाँचे के गिराए जाने की भरपाई याद है लेकिन जो अन्याय हिन्दुओं के साथ सैकड़ों साल तक हुआ है उसकी भरपाई की उन्हें चिंता नहीं है। नरीमन का कहना है कि फैसले में ‘सेक्युलरिज्म’ का ध्यान नहीं रखा गया। यानी सेक्युलरिज्म का ध्यान तब होता जब हिन्दू अपना दावा छोड़ कर चुप चाप बैठ जाते।
माफ़ करिए नरीमन साहब। आप पारसी समुदाय के पादरी हैं। आपको आपके पिता ने छोटी उम्र से आपके धर्म के बारे में सिखाना चालू कर दिया था। आपसे कोई आपके धार्मिक स्थल छोड़ने को कहे तो कैसे लगेगा। तब आप सेक्युलरिज्म की दुहाई देंगे? नहीं देंगे! इसलिए हम भी सेक्युलरिज्म की खातिर अपने धर्म को नहीं छोड़ेंगे। लेक्चर के दौरान रोहिंटन नरीमन के दुख का स्तर इसके बाद धीमे-धीमे बढ़ता ही गया।
उन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, साध्वी ऋतम्भरा समेत भाजपा और VHP के नेताओं को बरी किए जाने पर दुख जताया और उस जज को लानतें भेजी, जिसने यह फैसला सुनाया था। उन्होंने कहा कि उस जज को यूपी में एक पद दिया गया, जिसने इन नेताओं को बरी किया था। अरे नरीमन साहब! एक निचली अदालत के जज को कहीं नियुक्त किए जाने पर इतनी समस्या? आपके पिता जी सरकारी वकील रहे, आप भी रहे, जज बने फिर एक जज से इतनी समस्या।
और शायद ही ऐसा कोई दिन होता हो जब हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट अपने यहाँ के रिटायर्ड जज को किसी कमिटी और मध्यस्थता में नहीं शामिल करते हों। इस कानूनी रोजगार गारंटी योजना पर हजारों सवाल खड़े हुए हैं। लेकिन आपने कभी उस पर प्रश्न उठाए। कभी आपने उस कॉन्ग्रेस से सवाल पूछा जिसका एक नेता बहरुल इस्लाम पहले राज्य सभा का सदस्य बना फिर गुवाहाटी हाई कोर्ट में जज बना दिया गया, कुछ ही महीने में यहाँ का चीफ जस्टिस बन गया और यहाँ से भी रिटायर हुआ तो उसे सुप्रीम कोर्ट में जज बनाया गया।
पहली बात तो निचली अदालत के जज को उपलोकायुक्त बनाए जाने में कोई दिक्कत नहीं थी। फिर अगर आपको नैतिकता का मसला लगता है तो आखिर क्यों आप बाकियों पर सवाल नहीं उठाते। शायद ये जज आपके निशाने पर इसलिए था क्योंकि उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी समेत बाकी हिन्दुओं के लिए बात करने वाले नेताओं को जेल में नहीं डाला। तो समझिए महाराज! ये इमरजेंसी का दौर नहीं है। आपका इगो ना हर्ट हो, सिर्फ इसके लिए कोई जेल नहीं भेजा जाएगा।
घंटों तक पानी पी-पी कर बोलने के बाद रोहिंटन नरीमन का असल दुख बाहर आ गया। वह इस बात पर वह खासे फ्रस्टेटेड नजर आए कि आखिर अब कोर्ट में उन मस्जिदों के खिलाफ याचिकाएँ क्यों पड़ रही हैं, जो संभवतः मंदिरों को तोड़ कर बनाई गई हैं। उन्होंने इन याचिकाओं को ‘हाईड्रा हेड्स’ करार दिया। हाईड्रा ग्रीक मान्यता में एक ऐसा समुद्री दैत्य था जिसके कई सर थे। यानी अपने अधिकार के लिए लड़ने वाले हिन्दुओं को रोहिंटन नरीमन ने दैत्य करार दिया है।
नरीमन का कहना है कि अब 1991 का कानून सख्ती से लागू कर दिया जाए, जिसके तहत कोई भी हिन्दू इतिहास में अपने धार्मिक स्थल के साथ हुई बर्बरता के खिलाफ न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटा सकता है। उन्होंने कहा कि तभी हम सहिष्णु हो पाएँगे। भाईसाहब! आपको सहिष्णु होना है, हो जाइए। संविधान में अधिकार है। लेकिन हम अपने मंदिरों की कीमत पर सहिष्णु कहलाने का टैग नहीं खरीदेंगे। आपका सहिष्णुपना आपको मुबारक हो।
रोहिंटन नरीमन की राम मंदिर के खिलाफ फैसले पर खीझ क्यों है, यह उनके पिता और देश के बड़े वकीलों में शुमार रहे फली एस नरीमन की बातों से भी समझ आता है। फली एस नरीमन को इस बात से दिक्कत थी कि एक हिन्दू संत को यूपी का मुख्यमंत्री क्यों बनाया गया। खुद रोहिंटन नरीमन ने भी ऋग्वेद का उद्धरण देते हुए सनातन परंपरा में महिलाओं की प्रतिष्ठा के संबंध में विवादास्पद टिप्पणी की थी। एक बार किसी दूसरे मजहब की किताब पर ऐसी टिप्पणी करके उन्हें देखना था, सारी सहिष्णुता सामने आ जाती।
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